पंचगव्य चिकित्सा द्वारा श्वास रोग की चिकित्सा-
रोग के कारण- फेफड़ों में संक्रमण होना, श्वसन तंत्र का कप द्वारा अवरुद्ध होना एवं कमजोरी। पाचन संस्थान में विकृति आने पर भी यह रोग होता है ।
रोग के लक्षण : फेफड़ो की गति बढ़ जाती है। सीनें में भी सीटी जैसी आवाज आती है । घबराहट होने लगती है । हृदय की गति भी प्रभावित होती है ।
गो कृपा उपचार-
- 10/20 मिली मीटर गोमूत्र सुबह-शाम खाली पेट पीयें।
- गोमूत्र का सुखोष्ण वाष्प स्वेदन करें (गोमूत्र की भाफ नाक से श्वास द्वारा लें)।
- गोमूत्र का नश्य लें।
- गौमाता के गोबर से बने कंडे में अजवाइन, मिश्री को जलाकर नश्य लेवे ।
- गौमाता की पूंछ सिर पर घुमाए।
- गौ माता की परिक्रमा करें।
- श्रद्धा भाव से गो दर्शन एवं गो सेवा करें।
पथ्य-
हरी पत्तेदार सब्जियां, पपीता, बाजरा ,सुपाच्य भोजन। अधिक संख्या में गौ माता हो ऐसे स्थान पर रोगी निवास करें ।
कुपथ्य-
ठंडे पदार्थ, बर्फ, ठंडा पानी, दही, छाछ , तेल अधिक मिर्च मसाले, मद्ध मासं, दूध, ठंडी हवा कूलर या पंखे की तेज हवा से बचें, ठंडे पानी से स्नान नहीं करें।
विशेष: श्वास रोग का वेग अधिक बढ़ने पर गोमूत्र को गर्म करके उसमें पैर डुबो कर रखें।
नोट – किसी भी आयुर्वेद औषधि का सेवन करने से पहले आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले | जिससे आपको हानि होने की सम्भावना नही रहेगी |
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